सावन में बाबा विश्वनाथ के शरण में होंगे अखिलेश, क्या मुस्लिम परस्त छवि से बाहर निकलने का प्लान?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से ही सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए हिंदुत्व एजेंडे को धार देने में जुटी है, तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव हर हाल में वापसी करने की जुगत लगा रहे हैं. सपा के जातीय समीकरण दुरुस्त करने के साथ-साथ अखिलेश यादव अपनी मुस्लिम परस्त वाली छवि को भी तोड़ने में लगे हैं. इसी के मद्देनजर मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर मुखर होने के बजाय सामाजिक न्याय का एजेंडा सेट कर रहे है, तो साथ ही सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर अपने कदम बढ़ा दिए हैं.
सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग हरिद्वार से कांवड़ लेकर कांवड़िए शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर साल सावन के पहले दिन गोरखनाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ का रुद्राभिषेक व विधिवत पूजा अर्चना करते हैं. इस साल सावन के पहले सोमवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव काशी के बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करेंगे, जिसे लेकर सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं.
बाबा विश्वनाथ के शरण में अखिलेश
धार्मिक नगरी काशी सावन के महीने में भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान बन जाता है. सावन में काशी में भारी भीड़ होती है, खासकर सोमवार को, जब भक्त भगवान शिव की पूजा करने और जलाभिषेक करने के लिए उमड़ते हैं. देशभर के लोग बड़ी संख्या में बाबा विश्वनाथ के दर पर गंगा जल चढ़ाने और माथा टेकने पहुंचते हैं. इस बार सावन के पहले सोमवार को यादव बंधुओं के जलाभिषेक में सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी शिरकत करेंगे.
सावन का पहला सोमवार 14 जुलाई को पड़ रहा है. जलाभिषेक के लिए देशभर से 50 हजार यादव बंधु काशी विश्वनाथ के दर पर पहुंच रहे हैं. चंद्रवंशी गोप समिति के प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों अखिलेश यादव से लखनऊ में मुलाकात करके जलाभिषेक के लिए आमंत्रित किया. इस प्राचीन परंपरागत जलाभिषेक कार्यक्रम में शिरकत करने की मंजूरी भी अखिलेश यादव दे चुके हैं. चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के प्रदेश अध्यक्ष लालजी चंद्रवंशी ने बताया कि अखिलेश यादव सावन के प्रथम सोमवार को होने वाले बाबा के प्रथम जलाभिषेक में शामिल होंगे.
यदुवंशियों की जलाभिषेक परंपरा
साल 1952 से सावन के पहले सोमवार को यदुवंशियों का जत्था बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करता चला आ रहा है. स्व. तेजू सरदार ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. यादव बंधु हर साल सावन से पहले सोमवार को गौरी केदारेश्वर का जलाभिषेक करते हैं. उसके बाद तिलभांडेश्वर और फिर दशाश्वमेध घाट से जल लेकर बाबा विश्वनाथ को अर्पित करते हैं. बाबा विश्वनाथ के दरबार के बाद मृत्युंजय महादेव और त्रिलोचन महादेव के दर्शन करके काल भैरव को जल अर्पण के बाद ये यात्रा पूरी होती है.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को जब यदुवंशियों के जलाभिषेक की परंपरा का महत्व बताया गया तो उन्होंने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. अखिलेश यादव 14 जुलाई को काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पूजा करेंगे. अखिलेश के साथ काशी विश्वनाथ के जलाभिषेक के लिए इस बार देशभर के 50 हजार यादव बंधु काशी पहुंच रहे हैं. इस तरह 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा प्रमुख का काशी विश्वनाथ के मंदिर पर माथा टेक कर अपनी आस्था जाहिर करने के साथ-साथ सियासी एजेंडा भी सेट करते नजर आएंगे.
मुस्लिम परस्त छवि तोड़ पाएंगे अखिलेश?
मुलायम सिंह यादव ने सपा की बुनियाद रखी तो उसका आधार मुस्लिम और यादव हुआ करता था. एम-वाई समीकरण के सहारे तीन बार मुलायम सिंह और एक बार अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे, लेकिन 2014 के बाद से यूपी की सियासत बदल गई है. हिंदुत्व की छतरी के नीचे तमाम हिंदू जातियों को एकजुट करने में बीजेपी कामयाब रही. इसके लिए सपा पर यादववाद और मुस्लिम परस्त छवि को गढ़ने में बीजेपी कामयाब रही है, जो अखिलेश यादव के वापसी की राह में बड़ी सियासी अड़चन है.
यादववाद और मुस्लिम परस्त छवि से बाहर निकलने की कोशिश में अखिलेश यादव लंबे समय से जुटे हैं. बदले राजनीतिक हालात में अखिलेश यह जान चुके हैं कि सपा के परंपरागत M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे बीजेपी को नहीं हरा सकते. अखिलेश यादव सपा को मुलायम सिंह यादव की छवि से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके लिए 2024 में पीडीए का दांव चला था. अखिलेश पीडीए फॉर्मूले से बीजेपी को शिकस्त देने में सफल रहे हैं, लेकिन उसके बाद से बीजेपी फिर से उनके खिलाफ तानाबाना बुन रही है. ऐसे में अखिलेश यादव सावन में बाबा विश्वनाथ के दर से सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव खेलने की रणनीति बनाई है.
बीजेपी की पिच पर खेलना आसान नहीं
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो देश की सियासत अब बदल चुकी है. 2014 के बाद से जिस तरह हिंदू मतदाताओं पर बीजेपी की पकड़ मजबूत होती जा रही है, उससे अखिलेश को मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करने के लिए मजबूर कर दिया है. इस तरह सपा अपने सियासी एजेंडे पर बीजेपी को लाने के बजाय खुद बीजेपी की बिछाई सियासी बिसात पर उतर रही है. बीजेपी हिंदू समुदाय को अपना वोट बैंक मानती है, इसलिए उसकी पिच पर उतरकर मुकाबला करना सपा के लिए आसान नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम कहते हैं कि अखिलेश यादव कई तरह का सियासी प्रयोग करके देख चुके हैं, लेकिन बीजेपी से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अखिलेश अब बीजेपी की हिंदुत्व वाली पिच पर उतर रहे हैं, लेकिन इस रास्ते पर चलना उनके लिए दो धारी तलवार की तरह है. एक तो बीजेपी के सवालों का सामना करना पड़ेगा तो दूसरा मुस्लिम मतों के भरोसे को भी बनाए रखने की चुनौती होगी. मुस्लिम समुदाय भी सब देख रहा है, लेकिन राजनीतिक विकल्प न होने के चलते कशमकश की स्थिति बनी हुई है.