किसानों के लिए लड़े, महात्मा गांधी संग किया आंदोलन… फिर उन्हीं पर क्यों भड़क गए थे नेहरू को गीता ज्ञान देने वाले गुरु?

स्वामी सहजानंद सरस्वती, जिन्हें किसानों के भगवान के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के देवा गांव में हुआ था. लेकिन उनका कार्य क्षेत्र बिहार रहा और उन्होंने किसानों के उत्थान के लिए लगातार कार्य किए. इसलिए बिहार के किसान उन्हें अपना भगवान मानते हैं. आज भगवान स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुण्यतिथि है. इस मौके पर गाजीपुर में कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जानकार बताते हैं कि स्वामी जी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को गीता का ज्ञान और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भी मार्गदर्शन किया था.
वह बिहार में किसान आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते हैं और यही वजह है कि बिहार के किसानों के लिए स्वामी सहजानंद सरस्वती भगवान का रूप हैं. जीवन पर्यन्त जिंदगी भर उन्होंने किसानों के लिए काम किया और 26 जून 1950 में बिहार के बिहटा में उनका निधन हो गया था. इस दिन बिहार में किसान आंदोलन से जुड़े लोग श्रद्धा के साथ उनकी पुण्यतिथि मनाते हैं. वहीं उनके जन्म स्थान गाजीपुर के देवा गांव समेत तमाम कई इलाकों में उनकी पुण्यतिथि के दिन पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.
गाजीपुर में कार्यक्रम का आयोजन
स्वामी सहजानंद सरस्वती के नाम पर गाजीपुर में बनाए गए स्वामी सहजानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय में गुरुवार को दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन स्वामी सहजानंद सरस्वती न्यास की ओर से किया गया. इसमें स्वामी जी की जिंदगी पर प्रकाश डालते हुए उनके बताई गई राह पर लोगों को चलने की बातें कही गईं.
सहजानंद सरस्वती का जीवन
22 फरवरी 1889 को गाजीपुर के देव गांव में स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म हुआ, उनके बचपन का नाम नैरंग राय था और बचपन में ही उनकी पढ़ाई के दौरान उनका मन आध्यात्मिकता की तरफ हो गया था. ऐसे में आध्यात्मिकता की ओर उनका मन रमता देखकर परिवार वालों ने उनकी बाल्यावस्था में ही शादी कर दी थी. संयोग से गृहस्थ जीवन शुरू होने से पहले ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया था और दशानामी दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गए.
‘कैसे लोगे मालगुजरी लठ हमारा जिंदाबाद’
दीक्षा लेने के बाद स्वामी जी बिहार चले गए और वहीं पर किसान आंदोलन शुरू किया. उन्होंने उस वक्त नारा दिया था, ‘कैसे लोगे मालगुजरी लठ हमारा जिंदाबाद’ यह नारा बिहार में किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया था, जिसे जमींदारों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था. इसी दौरान 5 दिसंबर 1920 को पटना में कांग्रेस नेता के आवास पर महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई और उनके ही अनुरोध पर वह कांग्रेस में शामिल हो गए.
आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे
1920, यह वह दौर था. जब देश में अंग्रेजी की मनमानी बढ़ती जा रही थी. उन हालातों में महात्मा गांधी के कहने पर स्वामी जी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे और आंदोलन का केंद्र बिहार को बनाया. उन्होंने बक्सर और गाजीपुर में रहते हुए आजादी की लड़ाई किसानों तक पहुंचाई. उन्होंने जोश भरा और वह भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा भी बने. आंदोलन के दौरान वह गाजीपुर, वाराणसी, आजमगढ़, फैजाबाद और लखनऊ में जेल में भी रहे. इसके अलावा पटना के बांकीपुर जेल और हजारीबाग केंद्रीय जेल में उन्हें सजा भी झेलनी पड़ी.
महात्मा गांधी से क्यों हो गए थे अलग?
इसी दौरान स्वामी जी ने देखा कि जमींदार किसानों का किस तरह से शोषण कर रहे हैं और अपनी जेल यात्रा के दौरान ही वह महात्मा गांधी और उनके समर्थकों का जमीदारों के प्रति नरम रूप देखकर भड़क गए. इसके बाद वह महात्मा गांधी से अलग हुए और किसानों के लिए जीने मरने का प्रण लिया और आजीवन किसानों के लिए ही लड़े.