बसव राजू की मौत से टूट गए माओवादी, पिछले एक सप्ताह में पांच की निर्मम हत्या

जगदलपुर: बस्तर के अबूझमाड़ में एक माह पहले हुई बड़ी मुठभेड़ में माओवादी महासचिव बसव राजू की मौत के बाद से भाकपा (माओवादी) की रणनीति और व्यवहार में बौखलाहट साफ झलक रही है। आत्मसमर्पित माओवादियों द्वारा दी गई खुफिया जानकारी के आधार पर हुई इस कार्रवाई में माओवादी संगठन को भारी नुकसान झेलना पड़ा। बसव राजू के साथ माओवादी कंपनी नंबर-7 के 28 अन्य माओवादी भी मारे गए थे। इसके बाद से माओवादी संगठन आत्मसमर्पित माओवादियों को ही सबसे बड़ा खतरा मानते हुए उन्हें और उनके परिवारवालों को निशाना बना रहा है।
बीते एक सप्ताह में तीन अलग-अलग घटनाओं में आत्मसमर्पित माओवादी या उनके परिवारवालों की निर्मम हत्या की गई है। सबसे ताजा मामला बीजापुर जिले के पदेड़ा बाजार का है। यहां सोमवार को आत्मसमर्पित माओवादी से डीआरजी आरक्षक बने संतु पोटाम पर धारदार हथियार से जानलेवा हमला किया गया। गंभीर रूप से घायल संतु को बीजापुर अस्पताल में भर्ती कराया गया है। संतु पोटाम दो साल पहले सक्रिय माओवादी था।
लगातार निशाना बन रहे माओवादी
आत्मसमर्पण के बाद वह सुरक्षा बलों के लिए गोपनीय सैनिक की भूमिका निभा रहा था और हाल ही में डीआरजी में आरक्षक के रूप में शामिल हुआ था। इस घटना के एक दिन पहले ही पामेड़ थाना क्षेत्र के सेंड्राबोर और एमपुर गांवों में आत्मसमर्पित माओवादी वेको देवा और ग्रामीण समैया की हत्या कर दी गई। इसके कुछ दिन पूर्व गंगालूर थाना क्षेत्र के पेद्दाकोरमा गांव में आत्मसमर्पित माओवादी दिनेश मोड़ियम के परिवार के दो सदस्यों सहित तीन ग्रामीणों की हत्या कर दी गई थी। इनमें दो स्कूली छात्र भी शामिल थे। माओवादी लंबे समय से मुखबिरी के शक में ग्रामीणों की हत्या करते रहे हैं, लेकिन अब आत्मसमर्पित माओवादियों को वे अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानने लगे हैं।
माओवादियों के खिलाफ चल रहे अभियान निर्णायक चरण में हैं। शीर्ष नेताओं के मारे जाने के बाद वे सीधी लड़ाई से बच रहे हैं और निर्दोष ग्रामीणों को निशाना बना रहे हैं। -सुंदरराज पी आइजीपी बस्तर
समर्पण से हिली माओवाद की नींव
प्रदेश में पिछले दो वर्षों में माओवादियों के खिलाफ सघन अभियान और पुनर्वास नीति के असर से 1400 से अधिक माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इनमें लगभग 30 फीसद सीधे संगठन से जुड़े थे। इनसे मिली जानकारी के आधार पर सुरक्षा बलों ने कई सफल अभियान चलाए, जिनमें बसव राजू, सुधाकर, मधु, भास्कर जैसे शीर्ष नेताओं समेत 420 से अधिक माओवादी मारे गए हैं। इससे संगठन को गहरी चोट पहुंची है और बस्तर में उनकी पकड़ कमजोर पड़ी है। अब माओवादी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।