धान खरीदी में छत्तीसगढ़ सरकार को 8,000 करोड़ की चपत, अफसरों की सुस्ती ने बढ़ा दिया घाटा

रायपुर: प्रदेश में इस साल धान खरीदी में सरकार को फायदे की जगह भारी नुकसान हो रहा है। किसानों से 3,100 रुपये प्रति क्विंटल में खरीदे गए धान का कस्टम मीलिंग समय पर नहीं हो पाया, न ही अप्रैल में नीलामी का टेंडर जारी किया गया। पिछले साल से 30 लाख मीट्रिक टन अधिक धान खरीदा गया, मगर फूड और मार्कफेड विभाग की तैयारियां नाकाफी रहीं।

करोड़ों के नुकसान से ऐसे बच सकती है सरकार

बरसात शुरू होते ही अफसर हरकत में आए और अब बचा हुआ धान कई जगह खुले में सड़ने की कगार पर है।सरकार यदि 3,100 रुपये में धान खरीदने की बजाय, किसानों को 1,800 के बाजार मूल्य के अंतर (1,300 रुपये) के रूप में मार्जिन मनी सीधे खाते में ट्रांसफर करे, तो खजाने को हजारों करोड़ का नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

इतना धान खुले में पड़ा

अभी 3.70 करोड़ क्विंटल धान खुले में पड़ा है और सरकार को यह 1,900 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचना पड़ रहा है। इससे प्रति क्विंटल 2,200 रुपये का नुकसान और कुल मिलाकर 8,000 करोड़ की चपत लगने की आशंका है। बाजार में अप्रैल के दौरान धान का रेट 2,300 से 2,400 रुपये था। मगर टेंडर में देरी और रबी सीजन के धान की आमद के चलते रेट घटकर 1,800 रुपये तक आ गया। अगर समय रहते टेंडर हो जाता तो 1,800 करोड़ रुपये तक की बचत संभव थी।

4,100 रुपये लागत 1,900 रुपये में बिक्री

किसानों से 3,100 में खरीदा गया धान परिवहन, भंडारण, सुखत व अन्य खर्चों के साथ 4,100 रुपये प्रति क्विंटल में बैठता है। अब वही धान 1,900 रुपये में नीलाम किया जा रहा है। मिलर भी टेंडर में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, क्योंकि बाजार में उन्हें सस्ता धान पहले से ही उपलब्ध है। वे महंगा क्यों खरीदेंगे?

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