Chhath Puja Vidhi -छठ महापर्व: आस्था, शुद्धि और प्रकृति प्रेम का चार दिवसीय अनुष्ठान, जानें नहाय-खाय से उदय अर्घ्य तक का महत्व

Chhath Puja Vidhi /सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित आस्था का महापर्व छठ, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहा है, अब पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ अपनी छटा बिखेर रहा है।

Chhath Puja Vidhi /कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (नहाय-खाय) से प्रारंभ होकर चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व, व्रती को अनुशासन, संयम और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है। यह पर्व न केवल शरीर और मन की शुद्धि का माध्यम है, बल्कि परिवार और समाज में प्रेम, सहयोग और विश्वास को भी मजबूत करता है।

छठ पर्व का महत्व अत्यंत गहरा है। इसे करने से न केवल स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है, बल्कि परिवार में खुशहाली और संतोष भी बढ़ता है।

Chhath Puja Vidhi /इन चार दिनों की विधियां व्रती को अनुशासन, संयम, भक्ति और आत्मनिरीक्षण का संदेश देती हैं, जिससे व्रत और पूजा के दौरान शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह पर्व व्यक्तिगत आध्यात्मिक लाभ से बढ़कर समाज और परिवार में आपसी प्रेम, सहयोग, विश्वास और एकजुटता को भी मजबूत करता है, जो इसे भक्ति और श्रद्धा का एक अनुपम प्रतीक बनाता है।

छठ पर्व के चार दिन: नहाय-खाय से उदय अर्घ्य तक की विस्तृत विधि और महत्व

1. नहाय-खाय (पहला दिन – 25 अक्टूबर)
छठ पर्व का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पवित्र स्नान करके खुद को शुद्ध करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। आमतौर पर इस भोजन में सादा चावल, दाल और कद्दू या लौकी की सब्जी शामिल होती है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को आगामी व्रत के लिए शुद्ध करना और व्रत की सही शुरुआत करना है।

यह दिन व्रती के लिए आत्म-निरीक्षण और संयम सीखने का पहला कदम है, जहां वे अपने मन और कर्मों को शुद्ध करने पर पूरा ध्यान देते हैं। नहाय-खाय से व्रती अगले दिनों के कठिन निर्जल व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होते हैं।

2. खरना (दूसरा दिन – 26 अक्टूबर)
छठ पर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ कहलाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं, यानी भोजन और पानी का पूरी तरह से त्याग करते हैं। शाम को, व्रती गुड़ और चावल से बनी खीर, फल और अन्य मीठे प्रसाद ग्रहण करके अपना व्रत खोलते हैं। इस प्रसाद को परिवार के सदस्यों और दोस्तों में भी बांटा जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद, व्रती का फिर से निर्जल व्रत शुरू हो जाता है, जो अगले दिन संध्या अर्घ्य तक जारी रहता है। इस दिन का धार्मिक महत्व व्रती में संयम, तपस्या और ईश्वर के प्रति श्रद्धा को बढ़ाना है। व्रती अपने शरीर और मन को संयमित और शुद्ध बनाकर ईश्वर को समर्पित करते हैं। खरना व्रती की भक्ति, अनुशासन और आत्मनियंत्रण का अभ्यास करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।

3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन – 27 अक्टूबर)
छठ पर्व के तीसरे दिन का मुख्य अनुष्ठान ‘संध्या अर्घ्य’ होता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हुए शाम को नदी, तालाब या किसी अन्य जलाशय के किनारे जाते हैं। यहां वे डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह सूर्य को दिन में दिया जाने वाला पहला अर्घ्य माना जाता है। अर्घ्य के दौरान व्रती जल, दूध, मौसमी फल, ठेकुआ (छठ का विशेष प्रसाद) और अन्य पूजन सामग्री सूर्य देव को अर्पित करते हैं। शाम से रात तक व्रती भक्ति में लीन रहते हैं और श्रद्धा, भक्ति तथा अनुशासन के साथ ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। संध्या अर्घ्य व्रती के लिए आत्मशुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह दिन व्रती के संयम और भक्ति भाव को और अधिक मजबूत करता है।

4. उदय या पारण (चौथा दिन – 28 अक्टूबर)
छठ पर्व का चौथा और अंतिम दिन ‘उदय अर्घ्य’ या ‘पारण’ का होता है। इस दिन व्रती सूर्योदय से पहले ही नदी या तालाब के किनारे पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। पारण के बाद व्रती को ऊर्जा, आशीर्वाद और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव होता है। उदय अर्घ्य व्रती के समर्पण, भक्ति और परिवार की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। यह दिन व्रती के लिए ईश्वर से सीधे संपर्क और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर होता है, जो पूरे चार दिन के व्रत और तपस्या का सार्थक और शुभ समापन होता है। छठ महापर्व, प्रकृति और जीवन के स्रोत सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अनूठा और पवित्र माध्यम है।